Thursday, December 30, 2010

!!!!!!!!नया साल मुबारक हो!!!!!!

हम रोशन हों जग में सूरज की तरह 
अरसे, पल में बदल जाएँ
यही राह-ए-मंजिल की हैसियत हो
सफ़र आमद हों बन के हवाओं के झोंके
कि एक यह जा, एक वह जा

कोसों दूर से दिखाई दें अपनी कर्म पताकाएं
और हम मशगूल हों रोज़ रोजाना 
नयी रानाईयाँ लाने में
बानगी हमारी, हर तरफ हो तारी
कहीं कोई ना हो बेक़रारी

इज़हार हो,
हमारा प्यार बेशुमार
बिसाल-ए-यार होता रहे
इस तकनीक की आंधी में भी
नया साल, साल के पेड़ सा मजबूत जीवन दे
कि जैसे साल की बनायीं जाती है चौखट 
घर के दरवाजों के लिए
हम बनें साल की लकड़ी, 
अपने घर के लिए, 
अपनों के लिए
!!!!!!!!नया साल मुबारक हो!!!!!!!

(अभिषेक त्रिपाठी) 

Thursday, December 9, 2010

मेकिंग ऑफ़ द ग्रेट गुरु दत्त -बिछड़े सभी बारी बारी ( Making of Great Guru Dutt- Bichhde Sabhi Baari Baari)

मेकिंग ऑफ़ द ग्रेट गुरु दत्त -बिछड़े सभी बारी बारी- 
अभिषेक त्रिपाठी
'' कोई इंसान जिंदगी में सब कुछ पा लेने के बावजूद, इतना निःस्व, इतना रिक्त कैसे हो सकता है.'' यही है केंद्र बिंदु, बिमल मित्र के उपन्यास - "बिछड़े सभी बारी बारी" का . बेहद करीने से सजाये गए लगभग तीन वर्षों के गुरुदत्तीय जीवन वृतांत के अनछुए पहलुओं पर बिमल मित्र ने अपनी कलम का कमाल दिखाया है. गीता दत्त और गुरु दत्त के रिश्तों का अधूरापन कहाँ था, कौन सी दीमक उन्हें ख़त्म कर रही थी और उसकी वजह क्या थी, इस पर बड़े विस्तार से लिखा गया है इस उपन्यास में. हालाँकि पुरे उपन्यास में वहीदा रहमान से गुरु के रिश्तों को उतना विस्तार नहीं दिया गया है जैसा की उस समय के फ़िल्मी गोसिप्स में मशहूर था, इस की एक वजह यह भी हो सकती है की वहीदा अभी जीवित हैं. वहीदा-गुरु के पेचीदा रिश्तों का एक छोटा पर महत्वपूर्ण वाकया बिमल जी ने लिखा है फिल्म गौरी के निर्माण के समय का- जब गीता दत्त की वहीदा से स्त्रियोचित जलन से उपजे प्रसंग से गुरु इतना विचलित हुए कि उन्होंने उसी वक़्त फिल्म बंद कर दी. बिमल लिखते है-
" गुरु की जिंदगी में जो कुछ झूठ था, उस दिन से सच हो गया. जाने किन अशुभ पलों में गुरुदत्त 'गौरी' फिल्म बनाने के लिए यहाँ आया था. लेकिन यह  बात कोई भी नहीं जानता कि उसी दिन से गुरु सिर से पाँव तक बदल गया. यह वही दिन था, जब अपनी सारी यूनिट को दल-बल समेत बम्बई भेज कर गुरु ने अपनी रात ग्रेट ईस्टर्न में गुजारी.
असल में वह कमरा रामू सारिया के नाम से बुक किया गया था. लोगों को यही जानकारी हुई कि वह रात रामू सारिया ने उस होटल में गुजारी.
लेकिन असली घटना कुछ और थी. बस, उसी दिन से वहीदा रहमान बदल गयी; गुरुदत्त भी बदल गया. बस , उसी वक़्त से शुरू हो गया गुरु के जीवन में अशांति का दौरदौरा! वहीदा रहमान जैसी शांत-शरीफ अभिनेत्री ने अपने जीवन को नए रूप में आविष्कार किया. उस दिन उसे पहली बार अहसास हुआ कि वह सिर्फ अभिनेत्री ही नहीं है, वह भी एक औरत है.
और गुरुदत्त? उन दिनों गुरु को और कौन संभालता? बेहद अभिमानी मर्द- गुरु! जिंदगी भर वह सिर्फ अपने ही दिल की आवाज़ सुनता आया था. उसने अपने पिता की बात नहीं सुनीं, माँ की नहीं सुनी, यार दोस्त,नाते-रिश्तेदारों के हितोपदेश पर कान नहीं दिया. इसलिए अब, वह किसकी मनाही सुनता?"


उपन्यास से मालूम होता है कि वह गुरुदत्त जो बाहर की दुनिया के लिए हंसमुख, उदार, मिलनसार और न जाने क्या-क्या था, वही गुरुदत्त, गीता के लिए अव्वल दर्जे का प्रतिक्रियावादी और रूड हो चूका था. ऐसा प्रतीत होता है कि उसने गीता को जलाने के लिए ही बाद में वहीदा से इतने गहरे रिश्ते बनाये, वह भी तब जबकि गीता-गुरुदत्त अपने प्रेम विवाह के ६ वर्ष हंसी-ख़ुशी बिता चुके थे. गीता की वहीदा-गुरु समस्या का बारम्बार ज़िक्र बिमल ने बज़रिये गीता ही किया है . वहीदा की वजह से गीता-गुरु  के बिगड़ते सम्बन्ध ने उनकी गृहस्थी में कोहराम मचा रखा था. अनेकानेक घटनाएँ बिमल ने बखूबी बयां की हैं और लगता है कि तार-तार हो रहे इस रिश्ते का कोई उपाय नहीं था. गीता-गुरु का एक प्रसंग बिमल ने लिखा है-
"गीता भी उसी दुनियां में थी, लेकिन जाने कहाँ से तो रिश्ते छिन्न-भिन्न हो गए. गुरु कभी कभी घर ही नहीं लौटता था. अगर लौट भी आता था , तो व्हिस्की लेकर बैठ जाता था. उस वक़्त उसका न तो बातचीत का मूड होता था, न क्षमता. घर लौटते ही , वह बिस्तर पर लुढ़क जाता था और सो जाने की कोशिश करता था. गीता एक बार करवट बदल कर उसका चेहरा निहारती . उसकी बगल में लेटे इंसान में  कहीं कोई हरकत नहीं होती थी.
सुबह नींद से जागकर गीता ने पूछा, ' तुम क्या मुझसे नाराज़ हो?'
'नहीं, मैं अपना चरित्र ख़राब कर रहा हूँ. ! चरित्रहीन बन रहा हूँ!'
'मतलब?'
'मतलब, तुम मेरा इम्तिहान ले रही थी न? वहीदा के नाम से जाली ख़त भेजकर, यह सोचा था कि मुझे पता नहीं चलेगा. तुमने मुझसे यह जवाब तलब किया था न कि मैं बदचलन हूँ या नहीं? इसलिए चरित्र बर्बाद करने की कोशिश कर रहा हूँ. अब से मैं और ज्यादा दारु पियूँगा. वहीदा रहमान से और ज्यादा मिलूँगा."
हालांकि पूरे उपन्यास में गीता का चरित्र अंतर्वैयक्तिक और मितभाषी के रूप में मिलता है पर वहीदा -गुरु के सम्बन्ध में गीता का चरित्र एकदम उद्विग्न और असहनशील होकर उभरता है. इससे पता चलता है कि वह इस बात को लेकर कितनी संवेदनशील थी. जाने क्या बात थी कि जितनी प्रगाढ़ता गुरु -वहीदा में के बीच नहीं थी उससे कहीं ज्यादा गुरु ने इस प्रगाढ़ता को गीता के सामने प्रदर्शित किया, सिर्फ गीता के लिए, उसी गीता के लिए जिससे गुरु बेहद प्यार करता था और जिससे गुरु ने प्रेम विवाह किया था.
बिमल मित्र के प्रसिद्द उपन्यास साहब-बीवी-गुलाम पर फिल्म बनाने के सिलसिले गुरुदत्त से उनकी मुलाक़ात एक प्रगाढ़ रिश्ते में तब्दील हो गयी थी. इसी रिश्ते के माध्यम से  गुरुदत्त के जीवन में गहरे पैठ बनाने के बावजूद बिमल  गुरुदत्त के स्वभाव और चरित्र की कुछ बातों को कभी जान न सके.गुरुदत्त की जिस ट्रेजिक जीवनधारा को शायद न के बराबर लोग जानते हैं उसे उन्होंने इस उपन्यास में बखूबी उकेरा है. बिमल कहते हैं-
" मुझे अंदाज़ा हो गया, गुरुदत्त तन-मन-धन से लोगों के साथ अड्डेबाज़ी क्यों करता है? जब वह यार-दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करता है तब वह भूल जाना चाहता है कि घर में बीवी गैरहाजिर है, बेटा अस्पताल में गुर्दे का रोग झेल रहा है या लाखों रुपये सरकार को टैक्स देना है. स्टूडियो की फ़िक्र तो खैर है ही. उपर से कहानी की चिंता. सबसे बढ़कर अनिद्रा. लेकिन उसे निद्राहीन किसने किया है? किसने उसकी रातों की नींद छीन ली है? क्यों किस वजह से उसे रात रात भर नींद नहीं आती?
हजारों कोशिशों के बाद भी मैं उसकी जुबान से इसका जवाब नहीं पा सका.
गुरु ने गिलास से घूँट भर कर कहा,' बस , इसी तरह जिंदगी के बचे खुचे दिन कट जाएँ , काफी है.'"

गुरु के जीवन के साथ साथ इस उपन्यास से मुम्बैया फिल्म जीवन की अनेकानेक बातें उजागर होती हैं. वहां अभिनेता, कलाकार, लेखक की हैसियत, वहां के लोगों के रिश्तों की कहानियां, और भी न जाने क्या क्या.
लेखकों की दयनीय स्थिति के बारे मे तो कई बार जिक्र आया है. पर इसके इतर गुरु के मन में सच्चे लेखकों के लिए बहुत आदर सम्मान था. यह बात गुरु-बिमल के प्रगाढ़ रिश्ते खुद ही बयां करते हैं. बिमल ने बारम्बार गुरु द्वारा कलकत्ता से बम्बई बुलाने और अपने उपर किये जा रहे खर्चों का हवाला दिया है. जिस पर गुरु का हमेशा कहना होता था कि फिल्म बनेगी तो कमा लूँगा. हालाँकि गुरु बिमल से काफी एक्य महसूस करते थे और इसीलिए कारण-अकारण उन्हें अपने पास बुलाते रहते थे. बिमल लिखते हैं-
"हर बार मैंने वहां जाकर पूछा- क्या बात है, बुलाया क्यों.
गुरु जवाब देता था'-फिल्म की रीलें तैयार हो चुकी हैं. ज़रा देख लें..'
फिल्म के बारे में मेरी समझ ही कितनी सी थी. लेकिन मुझे देखे बिना, जैसे उसे चैन नहीं मिलता था.....मैं कहानी लेखक ज़रूर था मगर वह मुझे पूरा पूरा सम्मान देता था. ऐसा सम्मान हिंदी फिल्म जगत में अन्य किसी भी कथा लेखक को मिला है,यह कभी सुनने में नहीं आया."
गुरुदत्त की इस खूबी के बारे में फिल्म अभिनेता विश्वजीत ने बिमल से कहा था-" आप गुरुदत्त को देखने के बाद , बम्बई के अन्यान्य प्रोडूसर के बारे में विचार ने करें." इस तरह की अनेक बातें बिमल ने लिखीं हैं बिछड़े सभी बारी बारी में.

गुरु की प्रसिद्धि के चरम दिनों और उसके व्यक्तिगत जीवन की विसंगतियों का सटीक चित्रण इस उपन्यास में गंभीरता से किया गया है. बकौल बिमल-"यह ख्याति, यह प्रतिष्ठा , यह नाम-यश- इन सबकी कहीं कोई परिसमाप्ति है? गुरु निहायत गरीब घर की संतान, धीरे-धीरे भौतिक सुख के चरम शिखर पर पहुँच गया. उसके बाद, नाम यश के साथ -साथ आ मिला, लोभ, अति फिजूल खर्ची , आ जुड़े दुश्मन, दोस्त! उन दिनों आराम जैसी कोई चीज़ नहीं रही, नींद के नाम पर कुछ भी नहीं रहा. चापलूस लोगों के झुण्ड ने आ घेरा. यह था - गुरु!
                      यही ट्रेजडी , गुरुदत्त की ट्रेजडी बैंड गयी. इसी ट्रेजडी ने गुरु को अस्थिर कर दिया. अपने चरों तरफ घिरे लोगों की ओर देखते हुए, गुरु मात्र एक स्तुति बैंड गया. स्तुति का उपादान. कद्रदानों की संख्या भी ज़रूर मौजूद थी, लेकिन बेहद कम. सभी लोग लाखों-लाख रुपयों के आकर्षण में उसके इर्द-गिर्द जुटने लगे. उसके सामने मीठी-मीठी बातों का मोहजाल. सिर्फ मीठी मीठी बातें - तुम जिनिअस हो. तुम ग्रेट हो. तुम महान हो. 

गुरु के जीवन के ट्रेजडी और इसी दौरान उसकी आत्महत्या की कोशिशों को बड़े मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के तरीके से लिखा गया है..गुरु के मरने पर बिमल ने कई सवाल खुद से पूछे जिनके जवाब वे गुरु से कभी न पा सके. और इस तरह गुरु के जीवन का एक हिस्सा, हमेशा की तरह एक मिस्ट्री ही बना रह गया है इस उपन्यास में भी. ऐसा लगता है गुरु के मन से एक एक करके लोग बिछड़ते रहे  और वह उनका बिछोह हंस हंस कर झेलता रहा, चाहे वो गीता हो, या और कोई भी. इसीलिए शायद बिमल ने इसका नाम भी रखा- बिछड़े सभी बारी बारी. और यही कहानी भी है गुरुदत्त की.
उपन्यास का फ्लैप अपने आप में बड़ा दिलचस्प है और एक तरीके से एक गहन समीक्षा भी. कुल मिलकर यह उपन्यास गुरु के व्यक्तित्व का आइना है. गुरु की जिजीविषा , संघर्ष, प्रसिद्धि, फिल्म बनाए की सनक , लेखक प्रेम, बॉलीवुड की कार्यशैली , गीता-गुरु-वहीदा संबंधों का आख्यान यह उपन्यास है. हालाँकि उपन्यास को पढने पर कई बार लगता है कि कुछ छुट गया है लिखने को, बताने को, ज्यों ज्यों आप इसको पढ़ते जायेंगे आपको लगेगा अभी भी कुछ है जो बच रहा है बताने को, और यही इस उपन्यास की खासियत भी कही जा सकती है और कमजोरी भी. पर बिमल बेलौस बात कहने से थोडा बचते से नज़र आते हैं विशेष तौर पे वहीदा के  सम्बन्ध में. फिर भी मुझे लगता है कि सम्पूर्णता में  गुरु को समझने के लिए, उनकी रचनाधर्मिता को समझने के लिए, उनके अंतर्द्वंद्व को समझने के लिए यह एक बेहद सटीक और कारगर अभिलेख की तरह गढ़ा गया आख्यान है जिसे अवश्य पढ़ा जाना चाहिए. पूरे कथानक को इस कदर रोचक और वैयक्तिक तरीके से उकेरा गया है कि एक बारगी ही शुरू से अंत तक इसे पढ़ा जा सकता है. इसे पढ़ते हुए गुरुदत्त को न जानने वाले के मन में भी गुरु के लिए भावनाएं जागृत हो उठती हैं और गुरु की यंत्रणा और मनःस्थिति से पाठक स्वयमेव जुड़ जाता है. 

-अभिषेक त्रिपाठी

( Making of Great Guru Dutt- Bichhde Sabhi Baari Baari- This note has been written by Abhishek Tripathi, who is a working in the field of films as Music Director. The note worths the feelings came at the time of reading the famous bengali novelist Bimal Mitra's Bichhde Sabhi Baari Baari, which is based on the life of great Indian film maker Guru Dutt)

Saturday, November 27, 2010

Phas Gaye Re Obama: Music Review: Generation Music with Fragrance of Soil

Phas Gaye Re Obama has truly a generation musical expressions with heavy & nice fragrance of Indian soil i.e., Indian folk. Must be Promoted


The song Sara Pyar hai Bekar-


It is a ready mix Desi gana (song) which our ears are used to hear. The melody looks like that we just heard it in our home someday. It is a very hummable tune though it has a strong theatrical element. Some one has said correct that it is too difficult  to be simple and Music director Manish J Tipu has done it carefully and intentionally, as it appears. The song has good generation rythms with all modern elements of orchestration. In singing, the chorus is cool. Kailash Kher is as usual as he is always except the very last note of ending gone flat, which doesnt sounds good with him.
The lyrics is having many theatrical punches like- Main Gabbar ki Sister & jhadu de ke more bana dun.......phone hi kalle- and whole Gana is Punchy and able to make a mark on lips.SO THIS SONG IS RATED ****4/5***** 




The song-Amarikwa me-


Again very close to folk with firangi rythm patterns and blend of desi cheez. interludes are good.  Singing of Manish who is music director too of the song is interesting and sounds good with fresh flavour. Tipu makes his voice culture as the great Amitabh Bachchan in some song like rang barse kind which is so pleasent to hear because this is the thing which is totally missing these days in the film music. It doesnt means Tipu made a copy of Amit ji. It is only about voice culture. Salutes to him. Nice lyrics and orchestration. Rating ***3.5/5*****





Though both songs are totally situation based songs but they can be used for good promotion too, but i dont know why the film makers are not promoting them well inspite of that a few days back there was a bumper hit song in Peepli live which was actually a folk of MP. The folk element must be used and promoted in its genuine style and look up. dhinchak dhinchak has always no guaranty to be Successful, but the folk in its original form is always has a guaranty to be successful because it is tested since centuries.


Hope it will work this time. All the best!!!!


- Abhishek Tripathi

Sunday, May 23, 2010

शिकार : मेरी एक नयी कविता



शिकार





गति की स्थिरता 
और
स्थिरता की गति
जैसे 
किल्लोल हो हवा का




कोई एहसास नहीं
कौन क्या पाने वाला है
और
कौन क्या खोने वाला है


इस धरा की विचित्रता 
विचित्र है
पर यही काम की पवित्रता है


बस 
एक एहसास
कि
हम अपने लिए क्या हैं
और
दूसरे के लिए क्या


शिकार का खोना
किसी को कुछ दे जाता है


शिकारी का पाना
किसी का कुछ ले जाता है


जीवन के लिए मृत्यु
और 
मृत्यु के लिए जीवन




यही अनंत सत्य
चला आ रहा है
अनंत से

(अभिषेक त्रिपाठी)

Tuesday, May 11, 2010

देखो मेरी साँसें कहती हैं, सुनो ज़रा, सुनो ज़रा- एक अच्छी पहचान दूंगा

देखो मेरी साँसें कहती हैं
सुनो ज़रा
सुनो ज़रा
हम प्रेम दीवाने हुए
अब खाक ज़माना रोकेगा.




सिलसिला जन्मों का
हम और तुमे जो मिले हैं
तेरे मेरे प्यार के 
गुल हर सिम्त खिले हैं
तेरी मेरी जिंदगी
हर पल ये कहती है
हम प्रेम दीवाने हुए
अब खाक ज़माना रोकेगा

(अभिषेक त्रिपाठी)

ये गीत धुन बनाते हुए लिखा गया गीत है. इसे मैंने २००१ में लिखा और संगीतबद्ध किया था. धुन बी मेजर में बनायीं गयी है. कार्ड सिक्वेंस है- 


Chord sequence for Suno zara-


B/F#/B/F#/E
E/B
B/G#m/A/E/B
(Antara)
G#m/C#dim/C#m/D#m/G#
C#m/B
B/G#m/A/E/B




ये कार्ड सिक्वेंस सिर्फ द्योतक है की धुन किस दिशा में बहती है. कार्ड चार्ट कुछ और तरीके से बनेगा. उस समय मेरे लिए ये सिक्वेंस एक नया अनुभव था और मेरा ये मानना है कि कोई भी क्रम यदि आपको पसंद आता है या आपको चुनौतीपूर्ण लगता है तो उस पर  आपको ज़रूर धुन बनानी चाहिए. एक बात और इस धुन के बारे में बताना चाहूँगा........


अपने संघर्ष के शुरूआती दिनों में जब मैं प्रसिद्द संगीतकार श्री अमर हल्दीपुर जी के पास गया तो उन्होंने मुझे अपनी धुनें सुनाने के लिए कहा. मैंने उन्हें अपनी ये धुन पहले ही सुनाई , तो उन्होंने इतनी तारीफ़ की कि पूछिए मत. और इस धुन कि बदौलत मैंने उनके दिल में एक जगह बनायीं और फिर उनका प्यार मुझे हमेशा मिलता रहा. बाद में उन्होंने मेरे कई गाने अपने स्टूडियो में खुद मिक्स किये और ऐसे मिक्स किये कि जिनकी मिक्सिंग का कोई जवाब नहीं हो सकता.. 


वैसे ये मेरी अपनी धुनों में मुझे अधिकाधिक प्रिय लगती है, और मैं समझता हूँ कि भविष्य में मैं इसे एक अच्छी पहचान दे सकूँगा   फिल्म इंडस्ट्री  में.........


तो सुनना चाहते हैं न इसे???

Saturday, May 8, 2010

स्पिक्मैके रीवा - एक प्रसिद्द विवाह घर में रात्रिभोज करते हुए लोगों ने कंसर्ट सुनी

Spicmacay- A Movement



स्पिक्मैके के सभी साथियों और इस ब्लॉग पढ़ने वालों को नमस्कार.


प्यारे दोस्तों
जैसा की आप सभी स्पिक्मैके के अवधारणा, उद्देश्य और कार्य-प्रणाली से भली-भांति परिचित हैं, ये आन्दोलन का रूप ले चूका एक ऐसा विरला संगठन है जिसने समूचे देश में सांस्कृतिक क्रांति ला दी है. छात्रों और छात्राओं के बीच भारतीय शास्त्रीय संगीत और संस्कृति के प्रचार-प्रसार का मूल मंत्र लेकर इसे मूर्त रूप देकर स्पिक्मैके ने एक क्रांतिकारी काम किया है, और संस्थापक पद्मश्री किरन सेठ इसके लिए मेंटर, मार्गदर्शक और प्रशासक के तौर पर भूरि-भूरि प्रशंसा के पात्र हैं. स्पिक्मैके ने पिछले ३३ वर्षों में असीम उपलब्धियां बनाई हैं लेकिन साथ ही इस सांस्कृतिक आन्दोलन की पवित्रता, सादगी और मूल सिध्हांत को भी आश्चर्यजनक ढंग से बनाये रखा है जो की सबसे कठिन काम है, लाखों की तादाद में इस आन्दोलन से जुड़े लोगों यह संख्या अपने आप बताती है की इसमें कुछ नहीं बल्कि बहुत कुछ ख़ास है. आज छोटे से छोटे शहर में स्पिक्मैके पहुँच चुका है और अपने स्थानीय समन्वयको और स्वयंसेवकों के साथ शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों को शास्त्रीय संगीत और भारतीय सांस्कृतिक विरासत की शिक्षा दे रहा है, मैं लगभग पिछले ७ वर्षों से इस आन्दोलन से जुदा रहा हूं और ये कह सकता हूं की मैंने इसमें योगदान देकर अपने जीवन को सफल बनाया है. प्यारे साथियों रीवा(मध्यप्रदेश) में मैंने लगभग ७० से ज्यादा स्पिक्मैके की गतिविधियाँ आयोजित करीं और अपने देश के जाने माने कलाकारों को स्पिक्मैके के माध्यम से छात्रों के बीच ले जाकर उनकी कला का रसास्वादन छात्रों को कराया जिनमे पं विश्वमोहन भट्ट, पं रोनू मजूमदार, सलिल भट्ट, तीजन बाई, उमा शर्मा, आशीष खान, कलामंडलम रमनकुट्टी नायर, कोलकत्ता डोल्स थिएटर, रानी खानम, राजस्थानी मंगनियार समूह, निजामी ब्रदर्स आदि प्रमुख हैं, इस दौरान मुझे स्पिक्मैके का राज्य स्तरीय अधिवेशन करने का भी मौका प्राप्त हुआ और रीवा गौरव की इस कड़ी में जुड़ा जिसकी मुझे बहुत खुशी हुई और मैं कुछ समय तक स्पिक्मैके का राज्य समन्वयक भी रहा, इसके बाद मेरा जॉब बदला तो कुछ यूँ हालात हुए की मैं प्रत्यक्ष तौर पर स्पिक्मैके की गतिविधियों में शामिल न रह सका और रीवा में स्पिक्मैके का एक अंतराल गुजर गया लेकिन इसकी गतिविधियाँ ना हो सकीं. अभी कुछ दिनों पूर्व मैंने अखबार के माध्यम से जाना की स्पिक्मैके का कार्यक्रम रीवा में होना है तो मुझे काफी खुशी हुयी और दिल में आया कि शायद कोई पुनः आकर स्पिक्मैके के आन्दोलन को आगे बढ़ाएगा और एक बार फिर से छात्रों को इससे फलीभूत होने का मौका मिलेगा. इस ब्लॉग के पढने वाले उन साथियों को बताना चाहूँगा जोकि स्पिक्मैके कि कार्यप्रणाली से परिचित नहीं है कि स्पिक्मैके का कोई भी कंसर्ट सिर्फ और सिर्फ शैक्षणिक संस्थानों में ही किये जा सकते हैं और ये कंसर्ट केवल छात्रों के लिए किये जाते हैं जहाँ कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन लेक्चर के माध्यम से छात्रों को शिक्षित करने के उद्देश्य से करते हैं और इस सन्दर्भ में छात्रों की जिज्ञासा को भी शांत और पूरा करते हैं, २१ अप्रैल २०१० को शाम ८ बजे से स्पिक्मैके का एक कंसर्ट रीवा के एक प्रसिद्द विवाह घर में आयोजित किया गया जहाँ प्रसिद्द सरोद वादक पं बृजनारायण मिश्र आये और कंसर्ट की, पूरे कंसर्ट के दौरान विवाह घर के वरमाला हाल में सिर्फ ३५-४० संगीत प्रेमी दिखे पर एक भी छात्र नहीं मौजूद था, यही नहीं हाल के ठीक दायें बने विवाह घर के ओपन रेस्टोरेंट में रात्रिभोज करते हुए लोगों ने कंसर्ट सुनी और पुरी कंसर्ट के दौरान खाने पीने वाले लोगों का मूवमेंट बना रहा और पं जी बजाते रहे, कंसर्ट के बीच बीच में विवाह घर का डीजे भी बजता रहा औए पं बजाते रहे, मैं लगभग ३० मिनटों तक ही रह पाया और ग्लानि से भरकर बाहर चला आया और वहां से सरोद के सुर सुनता रहा......................................खैर मैं इस ब्लॉग के माध्यम से किसी की शिकायत नहीं कर रहा, बल्कि इस पवित्र आन्दोलन की अवधारणा स्मृत करना चाहता हूं और ये याद दिलाना चाहता हूं कि किसी को भी स्पिक्मैके जैसे आन्दोलन के जिम्मेदारी देने से पूर्व उसको समुचित तरीके से इस आन्दोलन का मूल मंत्र, उद्देश्य और कार्य प्रणाली की सारी जानकारी दी जानी चाहिए जिससे ये आन्दोलन अपने भाव से कभी बदला या रूपांतरित न नज़र आये. यदि आप खुद स्पिक्मैके के भावों से परिचित नहीं हैं तो आप छात्रों के बीच में जाकर कलाकार के माध्यम से उन्हें स्पिक्मैके और इसके उद्देश्यों से कैसे परिचित कराएँगे???????????????

आपके कथनों का स्वागत रहेगा.


राजीव त्रिपाठी
Rewa (एम. पी.)
मो-9713174704
Courtsey: http://rajivktripathi.blogspot.com/2010/04/spicmacay-movement.html

Saturday, March 27, 2010

Rewa Has Talent, which should be promoted

Haseen Pal Pyar Ka

Haseen Pal Pyar Ka is a song from the Music Album "Love Forever", which has been produced and recorded fully in Rewa of Madhya Pradesh. The all songs of this album has been tuned by the reknown music composer of this region Mr. Santosh tiwari, who has been working since very long ago in Rewa. He has been active in music since almost 20 years. He did a great job.

He came up with this album in very adverse conditions, as I know the surroundings of Rewa are very tough and hash. Apart from very dim resources here in Rewa , specially for Music & Culture, Santosh Tiwari shown his dareness to come up with good idea and simultaneously he started a new trend in market. Definitely, he will be called as a trend setter here in Rewa.

The song has been composed so nicely and simultaneously arranged & recorded well. Although technical deficiencies can be pointed out, but knowing the resources available in Rewa, it can be complimented as a very good job.

The song is penned by manoj Bairiha and rendered by Ankita & Ajay, who are good, specially Ankita is a very promissing vocalist for playback singing. Since last few years, the talents of Rewa are knocking at the door of film industry of India in Mumbai. Recently Pratibha Singh Baghel of Rewa has claimed a very good reputation among the Music Directors fo Industry, and nowadays , she is working in Mumbai. She was among top five contestents in SAREGAMAPA in last season.

A very long list of artists is ready to come up in near future in limelight from this region, as many are working in Mumbai, and many are ready to go there with thier talent, knowlege and experiences.

So finally hats off to Santosh tiwari, not for only making this nice tune, but also to start a trend in Rewa and vindhya region for music. Let us see the song.

Note:
It should be noted that it was not a video album, I just made the audio with a rough video visuals of my own resources, which were not done specially for this purpose. Only Audio is needed to be noticed and video may be ignored.


Thursday, February 18, 2010

My beloved Artist Actor Nirmal Pandey Passes Away :His Best Was Yet To Come






A Very deliberate acomplished actor and more of that a great and absolutely adorable human being, My Nirmal Dada gone to a long journey this 18th Feb. I got this bad and shocking news a little bit late on the net. 


Ohh..!!!!! 
Still I can not think about his this much earlier demise. I was not a frequently met person to him, but whenever we met or talked over phone, he always came with his smiling voice. He loved me a lot and he gave a good recognition to my music. I remember the day, I met him first time in person. That was a rehersal for a short film. He was going to perform as actor as well as a singer in that project. It was a eunuch based story. And as I started to dictate my tune to him, he just jumped on his chair and gave a very good remark and a lot of blessings. After this we talked many times on phone. He was willing to work as singer with me for some folk based music album a long back in 2004-05.

After these consequences, a few months later, we spent a good time in journey from Nagpur to rural MP area called Umariya for a stage programme. We were just having many discussions about theatre, Music, Art and many more.

He was very kind, supportive and friendly to all of younger guys. I remember him as  great human being. The world knows about his art, but still we were expecting more n more rather to say his best was yet to come.

I will miss him a lot...........

I know all will miss him......

Salutes to him..................

God bless him..................

God bless his belongings and beloved...but the journey is complished.


मुझे अपने एक दोस्त आलोक श्रीवास्तव जी का एक शेर याद आया है, निर्मल जी के इस बेवक्त चले जाने पर,


ये जिस्म क्या है, कोई पैरहन उधार का है 
यहीं संभाल के पहना,  यहीं उतार चले 

Monday, February 8, 2010

एक रंग ठहरा हुआ: आशीष त्रिपाठी का नया कविता संग्रह


एक रंग ठहरा हुआ
"एक रंग ठहरा हुआ" एक  नया कविता संग्रह हाल ही में प्रकाशित हुआ है, जिसमें  आशीष त्रिपाठी की महत्वपूर्ण कवितायेँ शामिल हैं. कवितायेँ आपके और हमारे बीच के जीवन का यथार्थ हैं. आशीष त्रिपाठी बचपन से ही साहित्य-कला-रंगमंच में सक्रिय रहें हैं. उनकी पहली पुस्तक - समकालीन हिंदी रंगमंच और रंगभाषा कुछ समय पूर्व ही प्रकाशित हुई है. इस पुस्तक के साथ-साथ ही आशीष जी के ही सम्पादन में प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह के विभिन्न आलेख चार अलग-अलग पुस्तक रूप में हाल ही में विमोचित किये गए हैं.
आशीष वर्तमान में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस में हिंदी के रीडर हैं. लम्बे समय से रंगमंच से जुड़े आशीष ने कई नाटकों का निर्देशन भी किया है. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में वे लगातार मौजूद रहे हैं.

अभी हाल ही में रविवार के जनसत्ता रायपुर के पृष्ठ चार में श्री अशोक वाजपयी ने अपने कालम कभी-कभार में कुछ यूँ लिखा है -

इस बार के विश्व पुस्तक मेले की हम में से कई के लिए और शायद सारे समकालीन हिंदी साहित्य जगत के लिए सबसे बड़ी घटना नामवर सिंह की चार पुस्तकों का एक साथ प्रकाशन है. हम लोग उनको बरसों से निजी और सार्वजनिक स्तरों पर निरी वाचिक परंपरा में महदूद हो जाने और लिखने से बचने के लिए कोंचते-कोसते रहे हैं. युवा आलोचक आशीष त्रिपाठी ने यह बड़ा काम किया है कि उनहोंने इस बीच नामवर जी द्वारा लिखित और बोली गयी सामग्री के अभिलिखित रूपों को  जतन और समझ से एकत्र और विन्यस्त  कर आठ पुस्तकों श्रृंखला बनायीं  है, जिसमे से पहली चार राजकमल प्रकाशन ने इस मेले में लोकार्पित  करायीं. . ..................यह  बिना  संकोच  के सुदृढ़  आधार  पर कहा जा सकता  है कि इन  पुस्तकों का प्रकाशन साहित्य और आलोचना  के लिए, स्वयं नामवर जी के लिए सचमुच  ऐतिहासिक  है. 
(courtsey: http://jansattaraipur.com/enews/20100214/jansatta4.pdf )

Saturday, January 23, 2010

Chai ke Bahane



Some Comments regarding the song-Chae ke Bahane
Responses to “Movie Preview: Chintuji (2009) starring Rishi Kapoor, Priyanshu Chatterjee”
1. The film Chintuji has a song with tags Chai Ke bahane. I think it must be promoted and discussed at the time of very fast and crazzy music. That song Chai ke Bahane comes with a trust for our melodies and heart caring musical caricatures. What you think!!!!
rajesh on September 8th, 2009 at 8:37 pm
2. I liked the song Chai Ke Bahane from movie Chintuji. Its really a nostalgic in mood but simultaneously awasome from the second stanger with full of zeal of romance of life. How the song have not been promoted while being very realistic sonundwaves it have in itself. Abhishek Ishteyak are superb in this time of just kicky music all over the scenario. hats off to Chai ke bahane and Composers too.
pankaj on September 9th, 2009 at 1:31 pm

http://www.radiosargam.com/films/ -
http://www.radiosargam.com/films/archives/53606/movie-preview-chintuji-2009-starring-rishi-kapoor-priyanshu-chatterjee.html



THURSDAY, OCTOBER 8, 2009
Chintju ji - Chai Ke Bahane Song
Hi guys, lately i heard of a Madhushree number, called Chai Ke Bahane, from the movie Chintu Ji. Its an amazing song, though it sounds very old kinda composition, but it sounds sweet. Madhushree is clearly the highlight in this song. But alas, the song didnt get any recognition. Listen it here
http://madhushree-mania.blogspot.com/

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