Friday, August 26, 2011

कलात्मक विकास के लिए रचनात्मक मंच - "प्रथा" का उदघाटन (Rewa)


कला का उद्देश्य जीवन की रचना

प्राप्स एन थीम्स इवेंट मैनेजमेंट सोलूशंस और सुर श्रृंगार संगीत अकादमी रीवा के संयुक्त तत्वावधान में शेम्फोर्ड स्कूल रीवा में कलात्मक विकास के लिए रचनात्मक मंच - प्रथा का उदघाटन ,२० अगस्त २०११ को शाम ६ बजे, अनेक संस्कृति कर्मियों की मौजूदगी में संपन्न हुआ. फोरम के सह संयोजक और संगीतकार प्रवाल शुक्ल ने सभी अतिथियों का अभिवादन किया और कहा कि हमारे इस्प्रयास में सबकी भागीदारी का होना ज़रूरी है और हम आशा करते हैं कि हम इस फोरम के मध्यम से कला का विकास करने में अपनी भूमिका सिद्ध कर सकेंगे.

कला के क्षेत्र में आधारभूत संरचना तैयार करने और विकसित करने के लिए गठित फोरम प्रथा की कार्यप्रणाली और विचारधारा के लिए अपने आधार वक्तव्य में संयोजक अभिषेक त्रिपाठी ने कहा कि हम सारी कलाओं के अन्तःसम्बन्धों को विक्सित करने और उनके विकास के लिए यह नियमित आयोजन श्रृंखला - प्रथा आरम्भ कर रहे हैं. इसमें पाक्षिक समयांतराल में गतिविधियाँ संचालित होंगी. इसमें सुनियोजित गोष्ठियां, एवं विचार विमर्श जैसी अनेक गतिविधियाँ शामिल होंगी. यह किसी संस्था का फोरम ना होकर सम्पूर्ण कला जगत से सम्बद्ध कलाकारों और कला प्रेमियों का रहेगा. वरिष्ट साहित्यकार श्री चन्द्रिका चन्द्र ने आरंभिक वक्तव्य में कहा कि इस मंच के नाम में हमारी प्रथाओं का सार्थक समागम प्रतिध्वनित होता है.

हिंदी साहित्य के विद्वान प्रोफेसर और साहित्यकार डॉ सेवाराम त्रिपाठी ने अपने महत्वपूर्ण उद्बोधन में कहा कि कलाओं का सबसे बड़ा उद्देश्य जीवन को रचना, हमें उदात्त बनाना और हमें आध्यात्म की ओर ले जाना है. कलाओं के माध्यम से बड़े विचार पैदा किये जा सकते हैं. जो लोग कलाओं के बारे में संकीर्ण विचार रखते हैं और कला की घेराबंदियों में संलग्न हैं , हमें उनसे भी संघर्ष करने की आवश्यकता है.

विख्यात कथाकार डॉ विवेक द्विवेदी अपने नजरिये को बताते हुए बोले कि दुनिया में साहित्य और कला ही जोड़ने का कार्य करते हैं. प्रसिद्द चित्रकार डॉ मिनाक्षी पाठक ने प्रथा की ज़रूरत बताते ह्येन बोलीं कि कला डिप्रेशन और तनाव से दूर जाने का रास्ता बताती हैं और हमे अपनी कलाओं के मूल में लौटने की आवश्यकता है. वरिष्ट रंगकर्मी श्री हरीश धवन ने कहा कि आज के माहौल में कला के क्षेत्र से हम की भावना गायब हो रही है और यह फोरम इस हम की भावना को आगे बढ़ा कर कलाओं की आधार संरचना पर अपनी गतिविधियाँ संचालित करने के लिए शुभाकांक्षाओं का पात्र है. प्रोफेसर दिनेश कुशवाहा ने कहा कि विचार एक अनमोल चीज़ है उसी तरह कला भी अनमोल हैं और इस फोरम का विचार खूबसूरत है. इस अवसर पर कवि शिव शंकर शिवाला, लायन महेंद्र सर्राफ, लायन सज्जी जान , डॉ नीलिमा भरद्वाज ने भी अपने विचार व्यक्त किये.

पूरे कार्यक्रम का संचालन रोचक बनाये रखते हुए युवा कवि श्री सत्येन्द्र सिंह सेंगर ने अपनी कुछ पंक्तियाँ प्रथा फोरम के गठन पर इस प्रकार सुनायीं-
ये प्रथा.. इंसानियत की..ये प्रथा..ईमान की
ये प्रथा..है साधना की, ये प्रथा..सम्मान की.
हम रहें या ना रहें.. पर, देश ये... ज़िंदा रहे
ये प्रथा..आराधना की, ये प्रथा..उन्वान की ..
इस धरा के स्वर में शामिल, 'विश्व मानव एकता'
ये प्रथा है... राम जी की, ये प्रथा... रहमान की ..


इस कार्यक्रम के दूसरे चरण में रीवा के संगीतकारों की ओर से कुछ लघु प्रस्तुतियां की गयीं. सुगम संगीत की गायिका और टीवी सीरियल वोइस ऑफ़ इंडिया में शामिल रही कु. मुकुल सोनी ने ३ गज़लें प्रस्तुत करके माहौल को संगीतमय कर दिया. इसके बाद श्रीमती तारा त्रिपाठी ने भूले बिसरे लोकगीतों की प्रस्तुति कर लोक गायन की परंपरा का सम्मान बढाया. क्षेत्र के सुविख्यात गायक डॉ राजनारायण तिवारी ने राग मेघ में एक बंदिश और तराना गा कर श्रोताओं को मन्त्र मुग्ध कर दिया. साथ ही उन्होंने कुछ गज़लें भी सुनाई. कार्यक्रम के अंत में पन्ना शहर से आये उस्ताद निसार हुसैन खान साहब के योग्य शिष्य श्री गौरव मिश्र ने एकल तबला वादन करते हुए ये साबित कर दिया कि हमारे शाश्त्रीय संगीत की जड़ें कितनी गहरी हैं.

शहर के अनेक गन मान्य नागरिक और संस्कृति कर्मी इस कार्यक्रम में उपस्थित थे. इनमे विशेष रूप से चन्द्र शेखर पाण्डे, विवेक सिंह , शुभा शुक्ल, विभु सूरी, के के जैन, कृष्ण कुमार मिश्र और शेम्फोर्ड स्कूल के स्टाफ के सदस्य शामिल रहे. सहयोगियों में अरुण विश्वकर्मा, अभिनव द्विवेदी, अतुल सिंह, अमन शुक्ल, प्रीती दीक्षित, प्राची सराफ, मुदित, शांतनु शुक्ल, आदि उपस्थित थे..

Friday, August 19, 2011

प्रथा- कलात्मक विकास हेतु रचनात्मक मंच (शेम्फोर्ड स्कूल , बोदा रोड in Rewa)


प्रथा- कलात्मक विकास हेतु रचनात्मक मंच

कल २० अगस्त २०११ को शाम ६ बजे
शेम्फोर्ड स्कूल , बोदा रोड , रीवा में

पहली बैठक 
जिसमे एक नयी परंपरा की शुरुआत कर रहे हैं हम
हर कला से जुड़े, हर कलाकार और संस्कृति-कर्मी
और हर कला प्रेमी का अपना मंच होगा कला की सार्थकता के लिए 
इसमें होगी हर १५ दिन में एक बैठक - जिसमे हर बार किसी नए विषय पर होगी
चर्चा, प्रस्तुतियां, मंथन, और भी सार्थक गतिविधियाँ.
एक सकारात्मक सोच के साथ
कल होगी इस मंच की स्थापना के विषय पे चर्चा
साथ ही कुछ लघु संगीत प्रस्तुतियां

आप सादर आमंत्रित हैं 
अपने इष्ट मित्रों और कला प्रेमियों के साथ
कला को ज्यादा से ज्यादा सार्थक रूप में आत्मसात करने के लिए
ये आपका अपना मंच है और आप इसके आयोजक हैं..
सादर 
अभिषेक त्रिपाठी
प्राप्स एन थीम्स इवेंट मैनेजमेंट सोलुशंस 
एवं 
प्रवाल शुक्ल
सुर श्रृंगार संगीत अकादमी 
रीवा 

Monday, August 8, 2011

क्यूँ कर डरना: My new poem ( Nayi Kavita)


एक नया दुस्साहस,
आपके सामने है,गलतियों के लिए क्षमा करेंगे, छंद में नया हूँ................

क्यूँ कर डरना

कर, ना करना,
क्यूँ कर कहना.
ये फितरत है,
अपना गहना.

शाम हुई अब,
कल फिर उड़ना.
पंछी का घर,
झूठा सपना.

छंद ना जानूं
कैसे कहना.
फिर-फिर सोचा,
क्यूँ कर डरना.


अंतर्मन तुम,
अपनी सुनना.
आगत क्या हो,
खुद ही बुनना.

जब-जब टीसे
मन का कोना.
तब खुद सावन,
बन कर  बहना.
copyright@abhishek tripathi 2011

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