Friday, July 27, 2012

हम फिर आये क्षितिज पे देखो (We came again on Sky)

हम फिर आये क्षितिज पे देखो
कल का देखेंगे फिर सपना
मीनारें बन चुकी हैं अब तो
इन सपनो की ईंटों से

इन ईंटों की कोमल सख्ती
करती है दिन रात चपल
कोई पौधा फिर बन जाये
बरगद बस सौ सालों का

ले मियाद हर सपना अपना
आता है सौ योजन से
इस दूरी को जो समझे वो
पोरस बन ठन जाता है
-Abhishek Tripathi

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