Sunday, May 23, 2010

शिकार : मेरी एक नयी कविता



शिकार





गति की स्थिरता 
और
स्थिरता की गति
जैसे 
किल्लोल हो हवा का




कोई एहसास नहीं
कौन क्या पाने वाला है
और
कौन क्या खोने वाला है


इस धरा की विचित्रता 
विचित्र है
पर यही काम की पवित्रता है


बस 
एक एहसास
कि
हम अपने लिए क्या हैं
और
दूसरे के लिए क्या


शिकार का खोना
किसी को कुछ दे जाता है


शिकारी का पाना
किसी का कुछ ले जाता है


जीवन के लिए मृत्यु
और 
मृत्यु के लिए जीवन




यही अनंत सत्य
चला आ रहा है
अनंत से

(अभिषेक त्रिपाठी)

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