एक नया दुस्साहस,
आपके सामने है,गलतियों के लिए क्षमा करेंगे, छंद में नया हूँ................
क्यूँ कर डरना
कर, ना करना,
क्यूँ कर कहना.
ये फितरत है,
अपना गहना.
शाम हुई अब,
कल फिर उड़ना.
पंछी का घर,
झूठा सपना.
छंद ना जानूं
कैसे कहना.
फिर-फिर सोचा,
क्यूँ कर डरना.
अंतर्मन तुम,
अपनी सुनना.
आगत क्या हो,
खुद ही बुनना.
जब-जब टीसे
मन का कोना.
तब खुद सावन,
बन कर  बहना.
copyright@abhishek tripathi 2011
 
 

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