हम फिर आये क्षितिज पे देखो
कल का देखेंगे फिर सपना
मीनारें बन चुकी हैं अब तो
इन सपनो की ईंटों से
इन ईंटों की कोमल सख्ती
करती है दिन रात चपल
कोई पौधा फिर बन जाये
बरगद बस सौ सालों का
ले मियाद हर सपना अपना
आता है सौ योजन से
इस दूरी को जो समझे वो
पोरस बन ठन जाता है
-Abhishek Tripathi
कल का देखेंगे फिर सपना
मीनारें बन चुकी हैं अब तो
इन सपनो की ईंटों से
इन ईंटों की कोमल सख्ती
करती है दिन रात चपल
कोई पौधा फिर बन जाये
बरगद बस सौ सालों का
ले मियाद हर सपना अपना
आता है सौ योजन से
इस दूरी को जो समझे वो
पोरस बन ठन जाता है
-Abhishek Tripathi